काग्युद महाप्रणिधान पूजा पाठ पुस्तक
हामारे शास्ता ने सम्यक सम्बुद्ध प्राप्त किये हुए तीर्थस्थल बोधगया में वार्षिक रूप में किया जाने वाला काग्युद महाप्रणिधान के लिए देश – विदेशो से आने वाले लोगों की काग्युद महाप्रणिधान संख्या हजारों में है। तेरगार मठ के नाजदिक काग्युद पाण्डाल में सभी उपस्थित होकर एक सप्ताह तक प्रणिधान पाठ कर्ते है। इस पाठ का उद्देश्य सम्पूर्ण प्रणि सुखवती भुवन प्राप्ति और संसारमे सुख एवम् शान्ति व्याप्त रहने के है। सन् २००४ में श्री ग्यालवाङ कर्मापा जी ने इस काग्युद महाप्रणिधान पाठ का मूल प्रारम्भ किया। इस उद्देश्य के बाद यह उत्तम स्थल गण के केंद्र में आसित सु – फल प्रदायक के हेतु प्रणिधान पाठ के उच्चारण बारम्बार कर्ते है। यह पाठ कर्ने से दृष्टि शुद्ध एवम् चित्त निर्मल होता है।
वर्तमानका काग्युद मोन्लम जो दिखाई पड रहा है यसका मूल प्रादुर्भाव भी १५ औं शताब्दी भोट प्रदेश से हुआ था। विशेषतः सातवे कर्मापा श्री धर्म कीर्ति सागर (छोईड्राक ग्याछो) जी के समय से ही महाप्रणिधान पाठका शुरुवात हुआ था। उस समय उन्होने प्रणिधान पाठका विस भाग बनाए। और भी बुद्ध वचन एवं शास्त्र से लिए गए निर्मल वचन जैसे वाचन के लिए, विशेष रूप से पूर्व के महान गुरू और परंपरागत गुरु से प्रतिपादित उपदेश अच्छे से जोडकार संक्षेप में बनाया और भी पूजा पाठ विधि के अनुसार गुरू वन्दनाए यसे ही एकविशंति तारा स्तुति, अक्ष्योभ्य और अमिताभ बुद्ध के भुवन प्राप्ति के प्रणिधान जीवित तथा मृतक के निम्ति प्रणिधान, महायान के उपोसाथ सवंर विधि और श्री अतिश जी के रचित दीप प्रणिधान आदि है।
अभ्यास क्रम में भी ग्यालवाङ कर्मापा के समीप में रहकर उनके मार्गदर्शन से यह प्रणिधान के पाठ करना और एक एक शब्द अर्थ चित्त में मनन करके उच्चारण कारना चाहिए । उच्चारण कर्ते भि प्रत्यक शब्द सुवर्ण के साथ यह संसार में व्याप्त होकर सूर्य, चन्द्र और तारा के प्रभा जैसे मैत्री, करुणा और प्रज्ञा भी सभि दिसाओं में प्रकाशित हो जाए एसा प्रणिधान करना चाहिए।