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བཀའ་བརྒྱུད་སྨོན་ལམ་ཆེན་མོའི་ཞལ་འདོན་ཕྱོགས་སྒྲིག །
འཕྲུལ་དེབ་ཕབ་ལེན།
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དཔེ་སྐྲུན་བྱེད་མཁན། प्रकाशक 出版者 |
བཀའ་བརྒྱུད་སྨོན་ལམ་དཔེ་སྐྲུན་ཁང་། Kagyu Monlam International 噶舉大祈願法會 |
སྤྱི་ཁྱབ་རྩོམ་སྒྲིག་པ། रचयिता 總編輯 |
རྒྱལ་དབང་ཀརྨ་པ་བཅུ་བདུན་པ་ཨོ་རྒྱན་ཕྲིན་ལས་རྡོ་རྗེ། 17th Gyalwang Karmapa 第十七世大寶法王噶瑪巴 鄔金欽列多傑 |
སྐད་རིགས། भाषा 語言 |
हिन्दी |
དཔེ་སྐྲུན་པར་གཞི། छापा संस्करण 印刷版 |
རྡོར་གདན་བཀའ་བརྒྱུད་སྨོན་ལམ་གྱི་དེབ་ཚོང་ཁང་། Kagyu Monlam Books & Souvenir Shop in Bodhgaya 菩提迦耶噶舉祈願法會義賣處 |
འཕྲུལ་དེབ་ཀྱི་པར་གཞི། ई – बुक संस्करण 電子書版本 |
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हामारे शास्ता ने सम्यक सम्बुद्ध प्राप्त किये हुए तीर्थस्थल बोधगया में वार्षिक रूप में किया जाने वाला काग्युद महाप्रणिधान के लिए देश – विदेशो से आने वाले लोगों की काग्युद महाप्रणिधान संख्या हजारों में है। तेरगार मठ के नाजदिक काग्युद पाण्डाल में सभी उपस्थित होकर एक सप्ताह तक प्रणिधान पाठ कर्ते है। इस पाठ का उद्देश्य सम्पूर्ण प्रणि सुखवती भुवन प्राप्ति और संसारमे सुख एवम् शान्ति व्याप्त रहने के है। सन् २००४ में श्री ग्यालवाङ कर्मापा जी ने इस काग्युद महाप्रणिधान पाठ का मूल प्रारम्भ किया। इस उद्देश्य के बाद यह उत्तम स्थल गण के केंद्र में आसित सु – फल प्रदायक के हेतु प्रणिधान पाठ के उच्चारण बारम्बार कर्ते है। यह पाठ कर्ने से दृष्टि शुद्ध एवम् चित्त निर्मल होता है।
वर्तमानका काग्युद मोन्लम जो दिखाई पड रहा है यसका मूल प्रादुर्भाव भी १५ औं शताब्दी भोट प्रदेश से हुआ था। विशेषतः सातवे कर्मापा श्री धर्म कीर्ति सागर (छोईड्राक ग्याछो) जी के समय से ही महाप्रणिधान पाठका शुरुवात हुआ था। उस समय उन्होने प्रणिधान पाठका विस भाग बनाए। और भी बुद्ध वचन एवं शास्त्र से लिए गए निर्मल वचन जैसे वाचन के लिए, विशेष रूप से पूर्व के महान गुरू और परंपरागत गुरु से प्रतिपादित उपदेश अच्छे से जोडकार संक्षेप में बनाया और भी पूजा पाठ विधि के अनुसार गुरू वन्दनाए यसे ही एकविशंति तारा स्तुति, अक्ष्योभ्य और अमिताभ बुद्ध के भुवन प्राप्ति के प्रणिधान जीवित तथा मृतक के निम्ति प्रणिधान, महायान के उपोसाथ सवंर विधि और श्री अतिश जी के रचित दीप प्रणिधान आदि है।
अभ्यास क्रम में भी ग्यालवाङ कर्मापा के समीप में रहकर उनके मार्गदर्शन से यह प्रणिधान के पाठ करना और एक एक शब्द अर्थ चित्त में मनन करके उच्चारण कारना चाहिए । उच्चारण कर्ते भि प्रत्यक शब्द सुवर्ण के साथ यह संसार में व्याप्त होकर सूर्य, चन्द्र और तारा के प्रभा जैसे मैत्री, करुणा और प्रज्ञा भी सभि दिसाओं में प्रकाशित हो जाए एसा प्रणिधान करना चाहिए।
दैनिक त्रिविध-पाठ
उपोसथ संवर-विधि
त्रिदण्डकम्
दैनिक त्रिविध-पाठ
महाप्रणिधान-पाठ का क्रम
प्रणिधान के बीस अंग
शरणगमन और बोधिचित्तोत्पाद
1. भूमि-अधिष्ठानांग
2. विहार अधिष्ठानांग
3. पूजा-अधिष्टानांग
4. आवाह्नांग
5. स्वागतांग
6. स्नानांग
7. काय परिमार्जनांग
8. वस्त्र एवं आभुषणार्पणांग
9. लेप-अर्पणांग
10 & 11 वन्दना और स्तुत्यांग द्वय
आभासालंकार सूत्र में आया बुद्ध-स्तुति
राष्ट्रपालसूत्र में आये मुनि-स्तुति
सूत्रालंकार में आये मैत्रेयनाथ द्वारा बुद्ध-स्तुति
स्वामी रङ्-जुङ दोर्जे द्वारा संगृहीत शत-जातक वन्दना
द्वादश लीला-स्तुति
12. पूजार्पण
रत्नोल्का-धारणी में कथित पूजा
बोधिचर्यावतार में आई पूजा
13. पाप-प्रायश्चितांग
त्रिसन्कध-सूत्र
सुवर्णप्रभा मे कथित प्रायश्चित
14. चित्तोत्पाद-अंग
15. अनुमोदन-अंग
16. धर्मचक्र प्रवर्त्तन प्रेरणा-अंग
17. दीर्घकाल तक रहने के लिये अभ्यर्थना-अंग
18. कुशल-मूल परिणामना-अंग
वज्रध्वज परिणामना में कथित
सुवर्णप्रभा में वर्णित
रत्नमाला में आये प्रणिधान
19. प्रणिधान-अंग
भद्रचर्या-प्रणिधान
मैत्रेय-प्रणिधान
बोधिचर्या-प्रणिधान
सुखावती-ज्ञेया-प्रणिधान
महाप्रणिधान
जीवित आयुष्मान् और मृतक के लिये परिणामना
प्रणिधानसिद्धि-धारणी
शासन-उज्जवलार्थ-प्रणिधान
सभी परम्पराओं के शासनधरों के दार्घायु हेतु प्रणिधान
20. मंगलवचनांग
आगम-वस्तु में आये मंगलकारी प्रार्थना
बारह लीलाओं का मंगलाचरण
देव परिपृच्छा मंगल श्लोक
अष्ट मंगल-द्रव्य भेंट
सात राजशाही वस्तुयें।
आठ मंगल-लक्षण भेंट
मरपा के मुख से कहे मंगल-वचन
विशाल मेलाप-स्थल मंगलाचरण
सत्यसिद्धक
बुद्ध-बोधिसत्त्वों की स्तुति का संग्रह
भगवान् नाथ मञ्जुवज्र का मंगलाचरणकारी स्तुति विहरति स्म।
भिक्षुणी लक्ष्मी द्वारा रचित आर्य (अवलोकितेश्वर) स्तुति
ब्रह्म-पटल नामक जिन मैत्रेयनाथ का विलापपूर्ण स्तुति
भूमि सु-अलंकार स्तुति
श्रीसमन्तभद्र-स्तुति एवं प्रणिधान
षड्-अलंकार श्रेष्ठ-द्वय की स्तुति
पञ्चविंशति-रथ की अभ्यर्थना
संक्षिप्त वज्रधर अभ्यर्थना
संक्षिप्त हेतु-यान-परम्परा अध्येषणा (बोधिसत्त्वसंवर-परम्परा-अध्येषणा)
शासन एवं सत्त्वों की बाधा-निवारक-विधि
आर्या की सप्तांग पूजा
एकविंशिति तारा-स्तुति (अनुशंसा सहित)
सप्त-शरण
सुचित्रण
शुक्ल-तारा स्तुति
अधिष्ठान-आभास नामक सरस्वती देवी-स्तुति
गुरु की सप्तपदी अध्येषणा
बाधा-निवारक अध्येषणा
अध्येष्णा : आशय-सहजसिद्धक
कुशलमूल को बोधि में परिवर्तित करने वाले आकस्मिक परिणामना एवं प्रणिधान
सत्य-पद-सिद्धि प्रणिधान
काम-अध्येषणा-नाम सत्त्व-सुखोत्सव
मार्गक्रम प्रणिधान
शङ्स-पा-धर्म प्रणिधान
दम्-पा का त्रिंशिका-प्रणिधान
नीतार्थ महामुद्रा प्रणिधान
अवलोकितेश्वर प्रणिधान
महान् तग्-लुङ् थङ्-पा का प्रणिधान
मुक्त-रत्न नामक ठो-फु प्रणिधान
सत्र-प्रणिधान (नाम) भट्टारक फग्-डु वचन
छ़ल्-पा प्रणिधान
असाधारण परिणामना और प्रणिधान
मि-ला (रस्-पा) का प्रणिधान
भोट-देश सुख-प्रणिधान
पूर्व-पश्चिम क्षेत्र-व्यूह प्रणिधान
सूत्राभिप्रायार्थ नामक अमरावती-क्षेत्र प्रणिधान
विशुद्ध-सुखावती प्रणिधान
संक्षिप्त सुखावती प्रणिधान
महाप्रणिधान के अवसर पर कुछ आवश्यक विधियाँ
स्थविर-नमन-पूजा
संक्षिप्त सप्त तथागत पूजा-विधि
गुरु-पूजा विधि
नाथ बेर्-चन् चम्-डल् का संक्षिप्त पोषण-विधि
कर्म-आशु प्रार्थना
नाथ-अविक्षिप्त धारणी-सूत्र
आर्य-सर्वकर्मावरण-विशोधनी नाम धारणी
(आर्य-)दुःख-विमुक्तक-धारणी-सूत्र
दीर्घायु-अध्येषणा
परमपावन 14वें दलाई लामा की अमर-अमृत भद्रघट (नामक) दीर्घायु-अध्येषणा
परम नायक 17वें कर्मापा तन्-ज़िन् कुन्-ख्यब् वङ्-गी दोर्जे की अनाभोगेच्छा (नामक) दीर्घायु-अध्येषणा
काग्युद् गुरुओं की दीर्घायु-अध्येषणा
कम्-छ़ङ सप्त पिता-पुत्र की दीर्घायु-अध्येषणा
महाप्रणिधान के अवसर पर प्रवचन-पाठ
सप्त त्रिंशत (सैंतीस) मण्डल(-पूजा)
दशदिग् चार काल (नामक) शासन-विस्तार प्रणिधान
दीप-प्रणिधान
महाकारुणिक की भावना-जप जगदर्थ आकाश-व्याप्त
दीप-प्रणिधान